जनता का जूता जनता के सर(corruption)

 




writer: mahendra verma

जनता का जूता जनता के सर

भारत देश एक लोकतान्त्रिक देश है मगर आज भी भारत की जनता आजाद देश की गुलाम हैं। जनता जाति के आधार पर बटी हुई। इसलिये कुछ प्रतिशत लोग इस देश की जनता पर जाति के आधार पर राज करते है।

सरकारी कार्यालय में ज्यादातर भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसमें तहसील]रजिस्ट्रार आँफिस इत्यादि शामिल है। तहसील में कानूनगो और लेखपाल तो भ्रष्टाचार का आधार है यह बिना रिश्वत खाये कोई काम नही करते । जनता यदि अपनी जमीन की पैमाईश के लिये इनके पास आवेदन करती है तो यह भ्रष्टाचारी दीमक रूपी सरकारी कर्मचारी बिना रिश्वत खाये जनता का कोई कार्य नही करते ।यह दलालों के माध्यम से पैसा खाकर ही फाईल अग्रसर करते है।कुछ लेखपाल तो भ्रष्टाचरी इतने है कि यह भूमाफिया के साथ मिल हुए है यदि किसी को अपनी जमीन की पैमाईश करानी है और गलती से वह ऐसे पटवारी के चुंगल में फँस गया तो पटावरी भूमाफिया के साथ मिलकर जमीन के नखली कागज बनाकर जमीन को किसी अन्य व्यक्ति को बेच देते है बिना पटावरी की मिलीभगत के भूमाफिया फर्जो तरीके से जमीन पर कब्जा करके किसी अन्य व्यक्ति को नही बेच सकते।इसके लिये पटवारी को भूमाफिया का दायिना हाथ रिश्वत खाकर बन जाता है।जो गैर कानूनी है।

 

2017 की एक सच्ची घटना है कि एक साधारण पुरूष्‍  महेन्‍द्र वर्मा एक पटवारी बन्‍दोपस्‍त तहसील देहरादून  के पास अपनी जमीन की पैमाईश कराने के लिये गया। उक्त व्यक्ति के पास जमीन की रजिस्ट्री की काँपी खो गयी थी इस बात का फायदा उठाते हुए उक्‍त पटवारी ने जमीन के मालिक से तीन हजार रूपये पैमाईश के लिये मांगे और कहा आपकी जमीन की पैमाईश हो जायेगी । जमीन के मालिक ने  उक्‍त पटवारी को तीन हजार रूपये दे दिये। उक्‍त पटवारी  जमीन के मालिक को गलत जगह ले गया और बोला आपकी जमीन घिर गयी है इसमें कुछ नही रह गया। जमीन का मालिक सीधा था यह जमीन उसे विरासत में मिली थी और वह अपनी जमीन के असली पते से अनभिज्ञ था। पटवारी  उक्त व्यक्ति की असली जमीन की जगह जानता था । अतः फर्जो कागजात बनाकर भूमाफिया के साथ मिलकर उक्त जमीन बेच दी ।तो ऐसे पटवारी तो भूमाफिया से ज्यादा खतरनाक है।

जनता तो पग-पग में ठगी जाति है कभी नेतागणो के हाथों तो कभी सरकारी कर्मचारीये से।

जनता का जूता जनता के सर पर मारा जाता है।

जनता का टैक्स का पैसा जनता से ही ठगा जाता है

देश को चलाने के लिये टैक्स एक मुख्य आधार है । मगर क्या जनता द्वारा दिया गया टैक्स ईमानदारी से देश के विकास कार्य में खर्च होता है या यह पैसा खा लिया जाता है जनता टैक्स न दे तो इसके लिये कानून है और जनता द्वारा दिया गया टैक्स का पैसा कितना कहाँ खर्च हुआ उसके लिये कोई कानून नही हैं ।हम सरकार से नही पूछ सकते कि हमारे टैक्स के पैसे का हिसाब दो। मगर सरकार जनता के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकती है यदि जनता टैक्स न दे। देश चलाना है  इसलिये टैक्स देना है मजबूर जनता को । यह अन्धा कानून है।

सड़के कई बार तोड़ी जाती है जो कार्य एक बार में हो सकता है उस कार्य के लिये कई बार सरकारी ठेके सरकार द्वारा दिये जाते है और ठेकेदार व सरकारी कर्मचारीयों की मिलीभगत से बहुत पैसा डकार लिया जाता है और जब बजट पेश होता है तो घाटा दिखाकर महंगाई का बोझ जनता के सर लाद दिया जाता है ।क्‍योकि जो सड़क एक बार में तोड़कर रिपेयर की जा सकती थी अब उसी सड़क को बनाने के लिये तीन बार उसे तोड़ा गया जिससे तीनगुना जनता का टैक्‍स का पैसा खर्च हुआ और बजट का भार बड़ा और जिससे मंहगाई भी बढ़ी।

कई बार तो इंजनीयिरो द्वारा पूरी योजना का पैसा खा लिया जाता है और फाईलों में दिखा दिया जाता है कि हमने पूरा पैसा सड़क इत्‍यादि बनाने में खर्च्‍ कर दिया है । टैक्‍स का 50 प्रतिश्‍त पैसा ही सरकार तक पहुंच पाता है । बाकी का पचास प्रतिशत पैसा मिलीभगत करके खा लिया जाता है । जब पूर्णरूप से टैक्‍स सरकार के पास नही पहुंच पाता है तो मंहगाई का बढ़ना तो जायज है।

सरकारी के बढ़े अधिकारीयों व मंत्रीगण को बिजली पानी मुफ्त मिल सकती मगर जब दिल्‍ली व पंजाब में  जनता को एक ईमानदार सरकार मुफ्त पानी बिजली देती है केन्‍द्र में बैठे मंत्रीगण कहते है कि जनता को मुफ्त बिजली पानी क्‍यों दे रहे हो इन्‍हे इसकी आदत पड़ जायेगी क्‍या जनता इतनी दयनीय स्थ्‍िति में आ चुकी कि इन्‍हें इनका सच्‍चा हक भी नही दिया जा सकता है।एक गरीब इन्‍सान भी टैक्‍स दे रहा है सूई से लेकर साबून इत्‍यादि एक आम इन्‍सान टैक्‍स देकर ही खरीदता है।भारत देश में बिना टैक्‍स के कोई समान नही मिलता।

गरीब इन्‍सान अपने हक की कानूनी लड़ाई नही लड़ सकता

यदि कोई गरीब इन्‍सान अपनी फरियाद लेकर कोर्ट में न्‍याय के लिये जाता है तो धन के बिना उसकी आवाज सुनने के लिये कोई राजी नही होगा। क्‍योकि वकीलों की फीस दिये बिना आप अपने हक की लड़ाई कोर्ट में नही लड़ सकते और कभी-कभी एडवान्‍स दिये गये पैसे भी वकील द्वारा खा लिये जाते है और एक गरीब इन्‍सान बिना केस लड़े ही हार जाता है ।कोर्ट एक मण्‍डी बन चुका है जहां पर न्‍याय पाने के लिये बोली लगती है। भारत देश में इस दोषपूर्ण system को बदलना होगा तभी भारत देश के प्रत्‍येक नागरिक को justice मिल सकता है।

कहते है आज कोर्ट में वह ही इन्‍सान अपने हक की कानूनी लड़ाई लड़ सकता है जिसके पैर लोहे के व हाथ सोने के है।

सरकारी योजनाये तो केवल फाईलों में दबकर रह गयी है।

अग्रेजो की गुलामी से हम आजाद हो गये मगर आज भी सिस्‍टम ने हमे आजाद देश का गुलाम बनाया हुआ है।


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