बदला देश भक्त का



writer: mahendra verma

एक ऐसे सच्चे देश भक्त की कहानी जो देश के भ्रष्टाचारी सिस्टम से लड़ता है

बदला देश भक्त का ऐसे सच्चे देश भक्तो को समर्पित है जो अपने ईमान को बिकने नही देते और देश की खातिर भ्रष्टाचारी सिस्टम से लड़ते-लड़ते शहीद हो जाते है मगर उनका यह बलिदान व्यर्थ नही जाता और फिर शुरू होता है बदला देश भक्त का

अजय एक 26 वर्षोय युवक है जो नवधा समाचार पत्र में पत्रकार के रूप में कार्यरत अजय एक ईमादार और कत्र्तव्यनिष्ठ पत्रकार है। जो देश के भ्रष्टाचारी सिस्टम से लड़ता है। उसका मकसद देश में से अपराध को खत्म करना है। उसके रास्ते में अनेक अपराधी आते है। और अजय को मारना चाहते है।

बड़ा मुश्किल हो जाता है अकेले भ्रष्टाचरी सिस्टम से लड़ना। क्योकि सिस्टम इतना हावी हो चुका है। कि हम अपनी अन्तर आत्मा की आवाज को सुन तो सकते है मगर उस पर अमल नही कर पाते। ऐसे में पत्रकार अजय की सहायता एक आत्मा उसके शरीर में प्रवेश करके करती है और फिर शुरू होता है बदला देश भक्त का।

यह आत्मा किसी ईमानदार व्यक्ति की है। जिसका मिशन अधूरा रह जाता है। और अपराधीयों के षडयन्त्र का शिकार हो जाता है और मारा जाता है।

बदला देश भक्त का नामक उपन्यास एक  है। यह कोई हाॅरर उपन्यास नही है। कोई भूत-प्रेत की कहानी नही है। यह कहानी उन लोगो की है जो देश को बचाने के लिये देश के दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो जाते है।

इस तरह से अजय और जुर्म की दुनिया के बीच जंग छिड़ जाती है और

अजय गोली से बाल-बाल बचा। अजय ने पूरी ताकत के साथ शैतान की दोनों टाॅगों के मध्य एक जोरदार लात जड़ दी शैतान उस असहनीय वार को सहन नही कर पाया और अचेत पड़ गया।

अजय वहाॅ से दौड़कर अभी कुछ दूर पहुॅचा ही था कि अचानक उसका पैर फिसल गया। अजय के शरीर से ख्ूान टपककर जमीन पर गिर रहा था।

तभी अचानक अजय को कुछ हलचल-सी महसूस हुई।  उसे लगा शायद कोई यहाॅ है।

तभी एक साया उसे अपने सामने दिखाई दिया। अजय उसे देखते ही भागने लगा।

ठहरो, साये ने आवाज दी ,‘‘डरों मत मै तुम्हारा दोस्त हूूॅ दुश्मन नही

----तुम कौन हो? ठीक तरह से सामने क्यों नही आते। अजय ने लड़खड़ायी आवाज में पूछा?

मै एक आत्मा हूँ और तुम्हारे सच्चे खून की बँॅूदों ने मुझे कब्र से आजाद कर दिया है।

---मुझे समझ नही रहा है आखिर तुम मुझसे क्या चाहते हो

जो तुम चाहते हो वो मै भी चाहता हॅू। फर्क इतना है कि तुम इन्सान हो और मै आत्मा तुम अकेले शैतान सिंह को नही मार सकते

तुम शैतान को कैसे जानते हो? अजय ने आश्चर्य भरे शब्दों मे पूछा?

मै सब कुछ जानता हूॅ। शैतान तुम्हे मौत के घाट उतारने आया है। परन्तु मेरे होते हुए वो तुम्हें नही मार पाएगा।अब उसे मुॅह की खानी पड़ेगी।

तुम्हारी शैतान से क्या दुश्मनी है?

शैतान सिक्के का एक पहलू है। अभी बहुत कुछ जानना बाकी है तुम्हारे लिये।

अगर तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास है तो आॅखें बन्द करके तीन बार मेरा नाम पुकारों।

मै तुम्हारी मदद अवश्य करूॅगा।

यह सुनकर अजय सोच में पड़ गया।

सोच क्या रहे हो? वक्त बहुत कम है। तुम्हारे पास शैतान यहाॅ आता होगा।

अब जब कभी भी तुम मुसीबत में होगे और तुम्हारे शरीर से खून की बूॅद निकलेगी तो मै तुम्हारे शरीर में प्रवीष्ट हो जाँॅऊगा।

इतना कहकर वो गायब हो गया।

अजय ने पीछे मुड़कर देखा तो वो भी भौचक्का-सा रह गया।

अब तुम्हें शैतान के हाथों से कोई नही बचा सकता रिर्पाटर।इतना कहते ही उसने एक घॅूसा अजय के मुॅह में जड़ दिया।

अजय के होठ से खून निकलकर जमीन पर गिरने लगा।फिर उसे अपने शरीर पर हलचल महसूस हुई उसे लगा मानों कई गुना शक्ति उसके अन्दर प्रविष्ट हो गयी है।फिर उसकी आॅखें लाल हो गई और चेहरा तमतमाने लगा। उसके सिर के बाल सीधे खड़े हो गये और भौहंे ऊपर चढ़ गयी।

एक आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी।

वह शैतान को एक टक घूरे जा रहा था। शैतान यह बदलाव देखकर विस्मय में पड़ गया, उसे क्या मालूम था कि सच्ची आत्मा अजय के शरीर में प्रवीष्ट कर चुकी है।

शैतान ने आॅव देखा ताॅव और जैसी उसे मारने के लिए हाथ उठाया, अजय ने बिजली जैसी फूर्ती के  साथ उसका हाथ पकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से एक घॅूसा उसके जबड़े में जड़ दिया।

घूॅसा इतना असहनीय था कि शैतान कलाबाजीयाॅ खाता हुआ थोड़ी दूर जाकर गिरा।

घॅूसा लगते ही उसके जबड़ों से ख्ूान की धारा बहने लगी और जमीन पर उसके टूटे दाॅत गिर पड़े।

उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हो रही थी कि अजय के पास अचानक इतनी शक्ति कैसे गयी।

उसने अपनी जेब में हाथ डाला माऊसर उसकी जेब से गायब था।

वो बड़ी मुश्किल से उठा और अजय पर फिर घँूसे से प्रहार करने लगा। अजय ने उसका मुक्का पकड़ लिया।

शैतान पूरी ताकत के साथ अपना घूँसा छुड़ाने की कोशिश कर रहा था मगर वो अजय का हाथ टस से मस नही कर सका।

कई अबलाओं की अस्मत लूटी है कमीने तूने। इस हाथ से कई मासूमों को मौत के घाट  उतारा है आज मै तेरे इस हाथ को जड़ से उखाड़ कर फंेक दूॅगा।

 इतना कहते ही अजय ने उसकी छाती पर एक जम के लात मारी और शैतान जमीन पर गिर पड़ा और उसका हाथ जड़ से उखाड़ कर फंेक दिया।

एक दर्दनाक चीख पूरे जंगल में गूॅज उठी और उस चीख के साथ शैतान बेहोश हो गया।

अजय को अपने शरीर पर एक झटका-सा महसूस हुआ और वो पहिले की तरह अपने शरीर को हल्का महसूस करने लगा।

इस तरह से लेखक ने दिलचस्प संवादों द्वारा इस उपन्यास को लिखा है।

चलो जब तुम इतने उत्सुक हो तो तुम्हें यह भी बता देता हॅू क्योकि इसके बाद तुम्हारा हर राज तुम्हारें जिस्म के साथ दफन हो जायेगा। वो अट्टाहस लगाते हुए बोला।

अजय ने इस अवसर का लाभ उठाया और एक मुक्का उसके सिर पे जमा दिया।वो यह प्रहार सम्भाल सका और दूर जाकर गिर गया।उसके हाथ से रिवाल्वर भी छूट कर कही दूर जा गिरी वो आग बबूला हो उठा और दिन चार घॅूसे अजय के मुॅह पर जड़ दिये और अजय जमीन पर गिर पड़ा वो सँभलकर उठा ही था कि अचानक वो फिर अजय पर टूट पड़ा और उसकी गर्दन को कसकर पकड़ लिया और बेरहमी के साथ उसे दबाने लगा।

अजय के मुॅह से ख्ूान निकलकर जमीन पर टपकने लगा।

जमीन पर खून पड़ते ही उसके शरीर में  अजीब-सी हरकत शुरू होने लगी।उसकी आॅखें र्सूख लाल हो गयी और ऊपर की ओरं चढ़ गयीं ,उसका चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा और शरीर से कपड़े फटने लगे ।उसके चेहरे से भयानकता उभरने लगी।फिर उसने एक शैतान की तरह दहाड़ मारी जिससे पूरा जंगल काॅप उठा।

भयंकर दहाड़ सुनकर भूतनाथ का दिल भी दहल गया।उसे समझ नही रहा था कि यह क्या हो रहा है।?

इससे पहिले कि वो कुछ समझ पाता अजय ने भूतनाथ को अपने दोनो हाथों से उठाया और गेंद की तरह  उसे उछाल कर फेंक दिया।

भूतनाथ दूर जा गिरा। उसे अजय का यह भयानक रूप आश्चर्यचकित कर रहा था। वो असंमंजस में पड़ गया कि अचानक अजय में इतनी शक्ति कहाॅ से गयी और इसका शरीर इतना ताकतवर कैसे हो गया कि इसके कपड़े कैसे? फटने लगे।

अजय ने एक जोरदार किंक उसकी ठोडी पर दे मारी,‘‘यह प्रहार उसके लिए असहनीय था वो बुरी तरह चिल्ला पड़ा। उसके नाक और मुॅह से खून निकलने लगा। उसकी चीख से पूरा जंगल गूँज रहा था।बहुत बेगुनाहो को दर्दनाक मौत दी है तूने कुत्ते आज मै तुझे दिखाता हूॅ दर्द क्या होता है?

इतना कहते ही अजय ने अपने पैर उसके हाथों पर रख दिये। भ्ूातनाथ चिल्ला उठा।

उसकी दर्दनाक चीखों को सुनने वाला जंगल में कोई और था।

बता कुत्ते किसने भेजा है तुझे। अजय ने उसकी आॅखों में आॅखे गड़ाते हुए पूछा?

बता दे वरना बेमौत मारा जाएगा।

भूतनाथ कुछ बोला खामोश रहा और कराहता रहा।

अजय ने आव देखा ताव और दो घूॅसे उसके मुॅह पर जड़ दिये।

भूतनाथ का चेहरा से खून बहने लगा। उसका चेहरा कई जगह से कट चुका था। अजय के दमदार घॅूसे वो सहन नही कर पा रहा था।

तुम कौन हो भाई? इतनी बेदर्दी से पुलिस वालों ने भी कभी मुझे नही मारा।

मुझे तुझ जैसा शैतान क्या पहचानेग कुत्ते, मै तेरी मौत बन कर यहाॅ आया हॅू। आज तूने अपनी मौत का पीछा खुद किया है और अब तू उसके दलदल में फॅस चुका है।

बस आखिरी बार पूछता हॅू ?बता दे किसने भेजा है तुझे।

भूतनाथ ने सोचा इससे पीछा छुटाना इतना आसान नही है। यह तो मौत से ज्यादा खतरनाक है इसलिये इसके आगे सच ऊगलना पड़ेगा हो सकता है ऐसा करने से यह मेरी जान बख्श दे।

जगन--जगन सेठ ने तुम्हें मारने के लिये मुझे सुपारी दी थी।

यह सुनकर अजय खिल-खिलाकर तेज हँसने लगा उसकी डरावनी हॅसी से पूरा जंगल गूॅज उठा।

और फिर अचानक वो खामोश हो गया और भूतनाथ को लाल मोटी-मोटी आॅखों से घूरने लगा।

---मुझे छोड़ दो मै तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हँू।भूतनाथ दर्द भरी आवाज में उससे फरियाद करने लगा।

तूने आज तक किसी पर दया नही कमीने इसलिये तू भी दया के लायक नही ।याद कर कितने बेगनाहों ने तेरे आगे हाथ जोड़े होगे मगर क्या तूझे उन पर दया आयी नही इसलिये आज तू भी दया के लायक नही इतना कहते ही अजय ने भूतनाथ की गर्दन को पकड़कर  सर धड़ से उखाड़कर फैक दिया। भूतनाथ की दर्दनाक चीख से पूरा जंगल गूॅज उठा।

भूतनाथ थोड़ी देर तड़पा और फिर हमेशा के लिये शान्त हो गया।

भूतनाथ के मरते ही अजय को अपना शरीर में एक झटका-सा महसूस हुआ

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लेखक ने रोमांटिक स्वादो से उपन्यास से संजोया है।

राजेश्वर घूमता-घूमता एक पहाड़ के टीलेे के पास पहुँचा जहाँ से एक खूबसूरत झूरना गिरता नजर रहा था। प्यासे को पानी की झलक मिल चुकी थी अतः उसने देरी करनी उचित समझी और उस ओर बड़ चला।वो पगडंडीयों से होता हुआ धीरे-धीरे पग भरता हुआ झरने के करीब पहुँचा। झरने के करीब पहुँचते ही उसे अपने कानों पर कुछ हलचल सी सुनाई दी।फिर अचानक उसकी नजर नीले आसमान पर पड़ी जहाँ पर तोते का झुण्ड चहकता हुआ झरने के ऊपर से गुजर रहा था।सूर्य की किरणे झरने पर स्वर्ण की तरह चमक रही थी। पानी अपनी मस्ती में लीन होकर अपने भाव में लीन था। राजेश्वर को फिर पानी में हलचल महसूस हुई। वो उस आवाज की ओंर बड़ने लगा।तभी उसका चेहरा हैरत से भर गया।यह आवाज उसकी जगह से रही थी जहाँ पर एक सुन्दर कन्या स्नान कर रही थी।

राजेश्वर ने देखा कि एक  20-22 वर्ष की सुन्दर कन्या पानीं में स्नान का लुफ्त उठा रही थी।उसका गोरा बदन,निगाहें कटीली हिरनी जैसी, होठ मूँगे की तरह लाल,और चेहरा चाँदनी की तरह चमक रहा था। उसका भीगा बदन उस वातावरण में एक अजीब-सी कशिश पैदा कर रहा था।उसके होठ पानी मे होते हुए भी प्यासे लग रहे थें।उसका यह सौन्दर्य चाँद की चाँदनी से ज्यादा मनमोहक लग रहा था।उसके गुलाबी होठ गुलाब की पंखुडि़यों की तरह खिले हुए थे।आज से पहिले इतनी खूबसूरत लड़की उसने पहिले कभी नही देखी थी।उसकी नजर एक पल के लिए उस पर ठहर-सी गयी थी। मानों वक्त भी उसकी नजर के साथ रूक गया था।

फिर अचानक उसका माथा ठनका। इस सुनसान वीराने में यह सुन्दर कन्या कैसे?कही ये कोई जल-परी तो नही मगर जल-परी तो बस कहानीयों और किस्सों मे होती हैं। यह कहीं मेरे सामने ख्वाब की तस्वीर तो नहीं ।राजेश्वर उसके रूप की मनमोहक शक्ति से आकर्षित हुए जा रहा था। उसे यह भी ख्याल रहा कि उसके कदम उसकी ओंर बढ़ रहे हैं।

राजेश्वर उसके काफी करीब पहुँच गया।उस हसीना की नजर राजेश्वर पर पड़ी और वो सहम गयी।

--कौन है आप?वो अपने मेें ही सिमटते हुए बोली।

यह सुनते ही राजेश्वर के कदम वही रूक गये और वो घबराहट भरे शब्दों मे बोला,‘‘मै--मै एक मुसाफिर हूुँ

वो तो मैं देख रही हूँ।

यहाँ कैसे?

जी मेरी गाड़ी गरम हो गयी थी इसलिये पानी की तलाश करते-करते यहाँ तक पहुँच गया।

कही ऐसा तो नही पानी का बहाना हो और तुम्हारे मन में कुछ और हो।

जी हाँ मुझे आकाशवाणी हुई थी कि एक लड़की झरने मे नहाते हुए मिलेगी।

आप क्या कहना चाहते है? सुन्दरी ने व्यंग्य करते हुए पूछा?

आप मुझे अंजमाना चाहती हैं ।मेरा दिल आईने की तरफ साफ हैं।राजेश्वर उसे निहारते हुए बोला।

वो राजेश्वर की इस रंगीले अन्दाज को देखकर शर्मा गयी।

--अच्छा आप अपना मुँह घुमाईये, मुझे पानी से बाहर आकर कपड़े बदलने है।

जैसा आपका हुक्म देवीजी।

और ध्यान रहे जब तक मै कहूँ पीछे मुड़कर मत देखना।

 वरना क्या?राजेश्वर ठठोली करते हुए बोला।

वरना अंजाम अच्छा नही होगा।

अब जो भी होगा वो मंजूर खुदा होगा।

आप तो पहेलीयाँ बुझा रहे है। प्लीज मुँह उधर कर लीजिए न।

ठीक हैं, मेमसाहब आपका हुक्म सर आँखों पर।

देवीजी काफी देर हो गयी क्या मैं मुड़ सकता हूँ।यह केवल आपके नहाने की जगह नही हैं, यह एक प्राकृतिक झरना भी हैं।यहाँ से कोई पानी भी तो ले सकता हैं।

पानी तो ले सकता हैं मगर जहाँ कोई लड़की नहा रही हो वहाँ से नही।

अच्छा देवीजी क्या मैं मुड़ तो सकता हूँ। क्या मुझे इजाजत है?

हाँ इजाजत हैं। वहाँ से आवाज आई।

इशारा मिलते ही राजेश्वर घूमा और बोल उठा,‘‘ क्या इस झरने से थोड़ा पानी ले सकता हूँ।

देखिये मिस्टर यह झरना मेरी कोई प्राईवेट प्रापर्टी नही है, इसलिये मुझसे इजाजत लेने की क्या जरूरत है।

अजी मोहतरमा जरूरत हैं,‘‘मै तो आपको जल-परी समझ बैठा था इसलिए पूछ बैठा।

इतना कहते ही राजेश्वर ने कैन को पानी में डुबाया और उसे भरने लगा।

लगता हैं आप यहीं आस-पास ही रहती है।

क्यों--क्यों मिस्टर, आपसे कोई मतलब। उसने तीखे शब्दों में जवाब दिया।

ठीक हैं मोहतरमा आपकी इच्छा,‘‘घर का पता मत बताईये मगर यह तो बता दीजिए इतने वीराने जंगल में यूँ झरने में नहाते आपको डर नही लगता?

डर तो लगता हैं मगर क्या करें?वीरानें हमें पसन्द हैं।

काफी, अच्छी हैं आपकी पसन्द।

क्या कहा आपने और आप हमार यूँ पीछा क्यों कर रहे हो?

देखियें देवीजी, हम आपका कोई पीछा-वीछा नही करे रहे है।

तो फिर आप यहाँ किस काम से आये हैं।

हाथ में पानी से भरी कैन देखकर आप खुद ही अन्दाजा लगा लीजिए।

हाथ मे तो आपके पानी की कैन हैं मगर मंजिल कहाँ है?

आपकी और मेरी मंजिल एक ही लगती है।

मेरी मंजिल तो एक जनून है। वो आँख घ्ुामाते हुए बोली।

उसका यह जवाब सुनकर राजेश्वर कुछ सकपका-सा गया।

काफी गहरी बातें करती हैं आप।

मेरी जिन्दगी का सच खुद एक गहराई हैं।वो मुस्कुराते हुए बोली।

ओह, आप तो बहुत बड़ी दार्शनिक नजर आती हैं।काफी फलसफा है आपकी बातों में।

देखिये मिस्टर, आप अपना रास्ता नापिईये।कहीं  मेरे पीछे-पीछे आते आप अपना रास्ता भूल जायंे।

मैं तो सब कुछ भूल चुका हैं तुम्हें देखकर, वो अपने मन-ही- मन में बोला।

क्या--कहा आपने?

जी------कुछ नही।

हमें ऐसा लगा जैसा आपने हमसे कुछ कहा।

लीजिए बातों ही बातों में पता भी नही चला और मैं अपनी जिप्सी के करीब पहुँच गया।

अन्त में आपसे एक बात कहूँगा। मैं कोई गुण्डा नही हूँ एक आम शरीफ शहरी हूँ।

हम कौन सा आपकों गुण्डा बता रहे हैं लेकिन फिर भी किसी के दिल में क्या हैं?यह भी कुछ कहा जा सकता नही।

मोहतरमा आप तो हम पर व्यर्थ में तोहमत लगा रही हैं,‘‘दिल तो एक सागर हैं। इसकी  अनन्त गहराई को ढूँढने की कोशिश मत कीजिए,वरना इसमें गुम हो जाओगी।

उस सुन्दरी ने राजेश्वर की आँखों में देखा और बोल पड़ी,‘‘ गहरी बातें तो आप भी बहुत करते हैं।

उसकी आँखों में एक अजीब-सी कशिश थी।इतना कहते ही वो दूसरी पगडण्डी की तरफ मुड़ गयी।

राजेश्वर उससे कुछ कह पाया और देखते-ही-देखते वो उसकी आँखों से ओझल हो गयी।सब तकदीर के ही खेल हैं वो मन्द ही मन्द मुस्कुराया और अपनी जिप्सी की तरफ मुड़ गया,‘‘ मगर एक सवाल अब भी उसके जहन में घूम रहा था, इस वीराने में यह लड़की आखिर सिर्फ स्नान की करने आयी थी या फिर।शक करना उसका पेशा था।

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बदला देश भक्त का एक रहस्मय उपन्यास है जिसमें लेखक ने अपने लेखनी द्वारा उपन्यास को संवादो द्वारा और रामांचक बनाया है इसलिये सभी पाठकों से अनुराध की बदला देश भक्त का उपन्यास जरूर पढ़े ।यह उपन्यास घर-घर पहुॅचाने के उद्देश्य से यह उपन्यास प्रत्येक वर्ग के लिए रखा हे।।

उपन्यास की भीतर की कुछ लाईन पढ़कर आपको अनुभव हो चुका होगा कि यह उपन्यास बहुत रोमांचक है और करीब 274 पेंज का यह उपन्यास है।

लेखक ने रिर्पाटर अजय का एक आदर्श रूप दिखाया जो दुसरों के दुखों मे अपना दुख देखता है और निडर साहसी एक ऐसी बस्ती में पहुँच जाता है जहाँ पर मौत ताँडव कर चुकी थी।

अजय अपने कमरे में बैठा सिगरेट के कश पे कश पीए जा रहा था। उसे अपनी आँखों के सामने अस्पताल में कत्ल हुये मरीजों का चेहरा बार-बार सामने रहा था।

उसके दिमाग में अनगिनत प्रश्न उठने लगे।कौन हो सकता है कातिल,? ‘‘उन मजलूम गरीब लोगो का। हालात तो यह कहते हैं कि उनकी किसी से कोई दुश्मनी भी नही थी।

किसी को उनकी मौत से फायदा भी क्या हो सकता हैं।

कुछ सोचते-सोचते उसने लिखना आरम्भ किया

अभी कुछ दिन पहिले जहरीली शराब पीने से काफी  संख्या में, बेकसूर लोग मौत की नींद सो गये। यह एक ऐसा सहलाब था जो उनके परिवार के लोगों की तमाम खुशीयाँ बहा कर ले गया। यह उस परिवार के लोग है जहाँ कभी खुशीयोें के चिराग जलते थे आज वहाँ मातम छाया हुआ है। कौन हैं उनकी खुशीयों को छीनने वाला? कौन है मासूमों को विधवा बनाने वाला? प्रशासन भी इस मामले में चुप्पी साधे बैठा हैं।इस केस को सुलझाने में एक आशा की किरण थी वो भी बुझ गयी।मेरे कहने का अर्थ है बेकसूर लोगों की अस्पताल में हुई हत्याएँ। वो बेकसूर मरीज जो जहरीली शराब के दलदल से तो बच गये मगर अन्धकार रूपी सिस्टम के शिकार हो गये और बेमौत मारे गये और अभी तक पुलिस उनके कातिल को पकड़ नही पायी जिनके हाथ बेगुनाहों के खून से रंगे हुए थे और ही  शराब के उन अड्डों को सील किया गया जहाँ शराब के नाम पर जहर बाटा जाता हैं। इससे साफ जाहिर होता हैं कि पुलिस भी गुनाहगारों के साथ मिली हुयी हैं।

एक आम आदमी भ्रष्ट कानून और राजनीति का इस प्रकार गुलाम बन चुका है कि वह आज से कई साल पहिले भी गुलाम था। मगर फर्क बस इतना है कि उस समय वो अग्रेजो का गुलाम था आज वो राजनीति की कूटनीति का गुलाम है।

बहुत पहिले हमारा देश अग्रेजो की गुलामी से तो आजाद हो गया मगर उसके वासी आज भी आजाद देश के गुलाम बने हुए है।

राजनीति की कूटनीति ने एक आम आदमी को मँहगाइर्, बेरोजगारी अन्य कुरूतीयोें के भँवर में इस तरह से उलझा दिया है कि वह अपनी व्यक्तिगत उलझनों के अलावा कुछ और सोच ही नही सकता।आज के दौर में राजनीति का नाम बदलकर कूटनीति ही रखना होगा क्योंकि कूटनीति का चक्र आम आदमी के जीवन को ग्रसता ही जा रहा हैं।

यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाली पीढि़याँ अपने पूर्वजों को दोष देती रहेगी कि कैसे थे हमारे पूर्वज? जो कूटनीति से लड़ सके और बड़ते-बड़ते इसका दुष्चक्र इतना बड़ गया है कि आज हम इसके वातावरण में आजादी से साँस भी नही ले सकते।

जहरीली शराब बनाने वालों के नाम आज तक किसी को नही पता, उन्हें पकड़ने की बात तो दूर है, अवैध धन्धे करने वाले गिरोह कूटनीति की आड़ में बड़े से बड़े जुर्म को दबा देते है।ये लोग इसलिए बचते रहते है क्योंकि कानून की किताब में बिना सबूत के किसी भी मुजरिम को सजा नही दी जा सकती।कानून के नुमाइन्दे आम इन्सान के शरीर को नोच-नोच के खा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर राशन की दुकानों पर सरकार गरीबों के लिए चीनी, मिटटी का तेल, गेहूँ, चावल इत्यादि सरकारी रेट पर उपलब्ध करवाती हैं मगर यह सुविधाएं लोगों तक सही रूप में नही पहुँच पाती क्योंकि राशन विक्रेता यह सब राशन बाजार में ब्लैक कर देता हैं।उसे पकड़ने वाले मार्केटिंग इन्सपेक्टर उसे पकड़ने के बजाय उससे रिश्वत लेकर उसे ब्लैक मार्केटिंग को बड़ावा देते हैं।इस देश का सिस्टम इतना बिगड़ चुका है कि एक आम आदमी जिन्दा लाश की तरह अपनी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है।नेताओं ने फूट डालों और शासन करों की नीति को अपनाकर देश के कई टुकड़े कर दिये है।जनता विश्वास के साथ एक प्रतिनिधि को अपना  नेता चुनती है, जनता इस आशा में रहती हैं कि उनके द्वारा चुना गया प्रतिनिधि बुराई से लड़ेगा और अच्छाई का साम्राज्य स्थापित करेगा मगर ऐसा नही होता  जनता के साथ कदम-कदम पर छल होता है।

इस तरह से राजनीति एक व्यवसाय बन चुकी है। एक ऐसा व्यवसाय जो सच्चाई की बलि देने पर ही