आईना (गजल)
शायरः महेन्द्र वर्मा
आईना अपनी तस्वीर को ढूढँता है
आईना साखी के अक्स से मौहब्बत कर बैठा
उसकी छवि को अपने भीतर समा बैठा
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वो अपने दिल के जजबात उसे बयान करना चाहता था
हालात से मजबूर बन्द जुबान से बस गुन-गुना लिया करता था।
बहुत खुश था आईना बस मौहब्बत के बदले मौहब्बत चाहता था।
हर पल साखी को अपने सामने देखना चाहता था
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साखी जब सजने-सवरने के लिए उसके सामने आती
चाँदनी को अपने भीतर देखकर वो गजल गुनगुनाने लगा।
पूरा वातावरण जजबात की लौ से रोशन होने लगा।
चारों तरफ शहनाईयां गूँज रही थी।
दुल्हन की तरह सजी साखी आईने के सामने सज-संवर रही थी।
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आईना अपनी मौहब्बत ऐ जजबात का खून होते नही देख सकता था।
शादी का मंडप उसे अपनी मयत नजर आने लगा।
आईना यह मंजर बर्दाश न कर सका और टूट गया।
और फिर कभी जुड़ न सका
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Photo by :https://www.pexels.com/photo/woman-wearing-red-and-gold-saree-wedding-dress-2119095/
photo by photographer: brijesh kamal
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