आईना (गजल)

 





आईना (गजल)

 

शायरः महेन्द्र वर्मा

आईना अपनी तस्वीर को ढूढँता है

आईना साखी के अक्स से मौहब्बत कर बैठा

उसकी छवि को अपने भीतर समा बैठा

https://www.amazon.in/dp/B0B1N67S6G

वो अपने दिल के जजबात उसे बयान करना चाहता था

हालात से मजबूर बन्द जुबान से बस गुन-गुना लिया करता था।

बहुत खुश था आईना बस मौहब्बत के बदले मौहब्बत चाहता था।

हर पल साखी को अपने सामने देखना चाहता था

https://www.amazon.in/dp/B0B1N67S6G

साखी जब सजने-सवरने के लिए उसके सामने आती

चाँदनी को अपने भीतर देखकर वो गजल गुनगुनाने लगा।

पूरा वातावरण जजबात की लौ से रोशन होने लगा।

चारों तरफ शहनाईयां गूँज रही थी।

दुल्हन की तरह सजी साखी आईने के सामने सज-संवर रही थी।

https://www.amazon.in/dp/B0B1N67S6G

आईना अपनी मौहब्बत जजबात का खून होते नही देख सकता था।

शादी का मंडप उसे अपनी मयत नजर आने लगा।

आईना यह मंजर बर्दाश कर सका और टूट गया।

और फिर कभी जुड़ सका

https://www.amazon.in/dp/B0B1N67S6G

 

Photo by :https://www.pexels.com/photo/woman-wearing-red-and-gold-saree-wedding-dress-2119095/

photo by photographer: brijesh kamal



 


Post a Comment

0 Comments