मनीष ससौदिया और राजनीति(liquor policy case)

 


मनीष ससौदिया और राजनीति

मनीष ससौदिया एक ऐसा नाम जिन्होने दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी। मनीष ससौदिया की ईमानदारी ही एक सबसे बड़ा गुनाह है। हमारे देश में जो पूर्ण रूप से ईमानदार होकर सत्य के मार्ग पर चलेगा उसको अधर्म की राजनीति जीने नही देगी। अधर्म की राजनीति कहाँ आयी यह प्रश्न विचारणनीय है। अधर्म की राजनीति के जन्त दाता स्वयं वह जनता है जो पक्षपात मुनवाद जातिवाद के आधार पर वोट देती है।हम किसी भी पार्टो को गलत नही कह सकते क्योकि उसके जन्तदात तो तुम ही हो। जब तुम ईमानदारी से वोट नही दे सकते तो भ्रष्ट सिस्टम तो जन्म लेगा ही। मनीष ससौदिया की गिरफ्तारी तब होनी चाहिये थी जब सबूतो के आधार  पर  liquor policy में मनीष ससौदिया दोषी ठहराये जाते । भारत देश में आज के समय में भ्रष्ट राजनीति ने गुलामी की दास्ता को भी पीछे छोड़ दिया जब 1947 से पहिले हमारा देश अग्रेजों का गुलाम था।यह तो फिर से वही कहानी दोहराई जा रही है। अब तो समय यह आ गया है कि निर्दोष होती हुए भी किसी ईमानदार नेता को सलाखों के पीछे कैद करके रखा जा रहा है केवल कार्यवाही के नाम पर।

यदि जाँच एजेेन्सीयो से जाँच करवानी है तो केन्द्र सरकार को उत्तराखण्ड में पेपर लीक मामले में सीबीआई की जाँच निष्पक्ष तौर से करानी चाहिए। बेरोगारों के साथ जो भर्तो घोटाले होते है जाँच उसकी होनी चाहिये। जाँच जो तहसील नगर निगम और सरकार विभागों का जो भ्रष्ट तन्त्र है जाँच उनकी होनी चाहिये। जनता तो गुलाम इन्हें धर्म मजहब के नाम पर बहकाकर वोट हासिल कर लिये जाते है तो सत्य कार्य करने की सरकार को क्या जरूरत है।

जनता की गलती यह है कि जनता भ्रष्ट सिस्टम के कब्जे में है धर्म ,मजहब,मनुवाद ने जनता की सोच को खोखला बना दिया है। यदि सच्चाई से देखा जाये तो कोई भी धर्म गलत शिक्षा नही देता। प्रत्येक धर्म केवल सत्य की शिक्षा देता है मगर अवाम धर्म अनुसार वोट तो देती मगर धर्म अनुसार चलती नही ।

यह जो सिस्टम है इसके निर्माता तुम स्वयं हो इसलिये गरीब ओर गरीब बनता जा रहा है और अमीर और अमीर बनता जा रहा है दिल्ली मंे परिवर्तन हुआ एक गरीब का बच्चा को भी वह सुविधाये अच्छी शिक्षा मिलने लगी जो प्राईवेट स्कूलो मे अमीर इन्सानो के बच्चों को मिलती है। जब गरीब इन्सान भी पढ़ लिखकर साक्षर हो जायेगा तो वह राजनीति के कुचक्र को समझने लगा और उसका वोट बैक बदलेगा। इसलिये अधर्म की राजनीति गरीब के बच्चे को गरीब ही रहने देना चाहती है। इस एक गरीब इन्सान को सोचना होगा उसे भ्रष्ट राजनीति चाहिये या फिर अपने बच्चो का भविष्य। बच्चों के भविष्य से ही देश का भविष्य टिका हुआ है।

आज इतिहास में पहली बार हुआ है कि जनता को दिल्ली और पंजाब में बिजली 200 यूनिट तक फ्री मिल रही है बिजली फ्री इन राज्यों के अलावा मन्त्रीयों और अधिकारीयों को मिलती है मगर यह क्या परिवर्तन हुआ कि एक गरीब इन्सान को भी फ्री बिजली मिलने लगी। अब भ्रष्ट राजनीति को गँवारा नही है कि गरीब इन्सान भी पनपे।

भ्रष्ट राजनीति भी गरीब जनता को मुफ्त राशन देती है या कुछ कम कीमत पर। परन्तु यह राशन जानवरों तक के खाने योग्य नही होता । चावल और गेहूँ में कंकड़-पत्थर के अलावा कुछ नही होता।और बड़े ही घटिया किस्म का राशन गरीब जनता को दिया जाता है।

भारत देश में एक सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि यदि कोई इन्सान गरीब है  उसके पास उसके हक की लड़ाई लड़ने के लिये पैसे नही है तो वह कोर्ट में अपनी अवाज नही उठा सकता । सरकारी योजनाये केवल फाईलों तक ही सीमित है। भारत देश में कानून भी धनवान लोगो के लिये है निर्धन तो अपनी कानूनी लड़ाई लड़ ही नही सकता ।उसे सिस्टम के आगे खामोश रहना पड़ता है। यदि कोई निर्धन व्यक्ति है और उसे अचानक अपने बाप दादा की संपत्ति कागज ढूँढने पर मिल जाती है फिर वह कागजो के आधार पर तहसील जाता है जहाँ पर उसकी पुश्तैनी जमीन की निशानदेही करानी होती है वह पटवारी को कागज दिखाता है और एक अर्जो भी देता मगर बिना रिश्वत लिये पटवारी उसकी बात सुनने के लिये तैयार नही होता और किसी तहर वह निर्धन व्यक्ति पैसे किसी से उधाऱ लेकर पटवारी को रिश्वत खिलाकर अपनी पुश्तैनी जमीन पर पहुँचता है वहाँ पहुचने पर उसे पता चलता है कि उसकी जमीन में तो किसी रौबदार धनी व्यक्ति का कब्जा है। वह निर्धन व्यक्ति कोर्ट से अपनी जमीन छुड़वाने के लिए जाता है मगर कोर्ट में बिना धन के कोई भी उसका केस लड़ने से मना कर देता है तो भारत देश में यह जो कोर्ट का सिस्टम है कानून है उनके लिये है जिनके सोने के हाथ व लौहे के पैर है। माना निचली अदालत में कर्जा लेकर वह वकील को धन देकर अपना केस जीत जाता है तो उक्त धनवान कब्जेदार उसे हाईकोर्ट में उसके खिलाफ अपील कर देता है। अब निर्धन आदमी के पास धन नही है हाईकोर्ट में लड़ने के लिये तो उसे हार मानकर अपनी जमीन गवानी पड़ती है या धनवान कब्जेदार से कुछ पैसा न के बराबर लेकर उसे बेचनी पड़ती है अब प्रश्न यह उठता है कि क्या निर्धन होना कोई गुनाह है । निर्धन व्यक्ति ज्यादातर भ्रष्ट सिस्टम का शिकार होते है। और यदि कोई ऐसी पार्टो जो इस भ्रष्ट सिस्टम को बदला चाहती है निर्धनों को उनके अधिकार उनके हक की लड़ाई लड़ना चाहती है तो ऐसी पार्टो के मन्त्रीयों को झूठे केस में फँसाकर जेल में बन्द कर दिया जाता है। क्योकि भ्रष्ट राजनीति जनता को गुलाम बनाकर रखना चाहती है जो जनता को इस गुलामी से आजाद करायेगा वह जेल जायेगा। यहाँ हार मनीष  ससौदयाँ या आप की नही है यहाँ जो पतन हो रहा वह जनता का हो रहा है । माना आम आदमी व अन्य ऐसी ईमानदार पार्टो दिल्ली को छोड़ देती है तो क्या निर्धन व्यक्ति के बच्चे एक सरकारी स्कूलो में एक अच्छी शिक्षा व भ्रष्टाचार मुक्त देश की कल्पना भी कर सकते है। ईमानदार लोगो को जेल में बन्द करना भारत देश की जनता का पतन है।

 

 

Post a Comment

0 Comments