समय (what is Time)

                                 समय


                शोधकर्ताः महेन्द्र वर्मा

समय क्या है यह एक विस्तृत प्रश्न है। समय ब्रहांमाण्ड का एक सत्य है जो कभी स्थिर नही हो सकता ।समय एक बाजीगर है और  मनुष्य की जीवन की डोरीयाँ समय के हाथ में बन्धी हुई है और समय के हाथों में हम एकमात्र कठपुलियाँ है एक कथन है कि उसका वक्त गया था यानि जीवन का एक सत्य है जिस जीव ने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है समय सबसे बड़ा शिक्षक भी है जो हमें अच्छे- बुरे का अनुभव कराता है और हमे सशक्त बनाता है।समय हमारे जीवन की प्रत्येक दिनचर्या में वास करता है। सुबह,दोपहर,रात्रि हमें समय की उपस्थिति का अनुभव कराती है।

समय की अनुभुति हमें हमारे जीवन की तीन अवस्थाओं में देखने को मिलती है। बचपन,व्यस्कता और बुढ़ापा। बचपन में हम व्यस्क अवस्था में जाना चाहते है और बुढ़ापे में बचपन की अवस्था में ज्यादातर वृद्व चले जाते है और उनकी स्वभाव एक बच्चे की तरह होने लगता है।मगर वक्त की नजाकत मनुष्य को बुढ़ापे का साक्षात्कार कराती है। और वृद्वअवस्था अन्तिम प्लेटफार्म है जीवन की यात्रा का। मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है। समयानुसार हमें मृत्यु को प्राप्त होना होता है।

समय एक अदृष्य शक्ति है जो दिखाई नही देता मगर हमारे सम्पूर्ण जीवन में अपनी मौजूदगी का अहसास कराता है। बिना समय के जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती।जीवन समय के अनुसार चलता है।

युग बदलते रहते है मगर सूर्य उदय होता रहता  है समयानुसार और अस्त भी होता है।

समय इतिहास दोहराता है।समय ही भूतकाल और भविष्यकाल है।

प्रकृति और समय हमेशा रहते है इसमें बसने वाले लोग आते है और चले जाते है।

हर बुराई का अन्त समय ही करता है, बुरे कर्मो का हिसाब भी समय रखता है अच्छे-बुरे कर्म का फल समयानुसार ही मिलता है। समय एक प्राकृतिक शक्ति है जो जीवन का संचार करती है।समय ब्रहांमाण्ड के हर स्थान पर विराजमान है।समय का नियम सम्पूर्ण ब्रहामाण्ड में चलता है।

हमारा मन भी समय अनुसार चलता है हमारे जीवन में प्रातः काल,अपराहन,और सांय काल में हमारे मन की स्थ्तिि बदलती रहती है मन बड़ा चंचल है रात के समय मन ज्यादातर आराम करना चाहता है और रात को सोते समय मन में संभोग की इच्छा ज्यादा जागृत होती है अर्थात मन की क्रिया भी समयानुसार बदलती रहती है मन और समय कभी भी स्थिर नही होते। हमारे मन की क्रियाए समयानुसार बन्धी हुई है अर्थात हमारे मन की डोरीयाँ भी समय के हाथों में बन्धी हुई है। हम अपने मन के गुलाम है सोते-जागते हम मन अनुसार ही चलते है। संभोग की क्रिया भी मन के अनुसार बन्धी हुई है। यदि मन नही होगा तो मनुष्य संभोग भी नही करता

समय आगे बढ़ता चला जाता है और हम बाल्यकाल से व्यस्क अवस्था में पहुँच जाते है और बाल्यकाल में हमारी आँखों में सपने होते है हमारे सामने जीवन एक सच होता सपना होता है और व्यस्क अवस्था में पहुँचने के बाद अपनी जीविका चलाने के लिये हम अपने सपनों को भूल जाते है और ज्यादातर मनुष्य अधिक पैसा बनाने की राह पर चले जाते है यह समय की ही माया है कि हम धीरे-धीरे अपने जीवन में प्रोफेशनल हो जाते है। क्योकि अपनी  पत्नी और बच्चों की जरूरते हम पूरा करते है और जीविका को चलाने के लिय समय अनुसार चलने लगते है इसलिये समय एक बाजीगर है और हम उसके हाथों की कठपुतलीयाँ।

वृद्वावस्था में पहुँचने के बात हम अतीत में जाना चाहते है ज्यादतर बूढे इन्सान बाल्य-काल की अवस्था में चले जाते है फिर हम कहते है कि अब समय अनुसार इनकी उम्र हो चुकी है।

इसलिये यह कुछ बुढ़ापे में इनका स्वभाव बदल गया है मगर एक वृद्व मनुष्य का मन अपने बाल्यकाल मंे जाना चाहता है। क्योकि बाल्यकाल में उसके पास सपने थे कुछ लोगो के सपने पूरे भी होते है मगर फिर भी अवस्थायें बदल जाती है।

समय को हमने नही देखा मन को भी नही देख मगर जीवन का आधार यह दोनो ही है इनके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती।

हमारे मन के भीतर समय के लिये एक भय भी बना रहता है कि बीता हुआ समय लौट कर नही आता समय सिर्फ आगे बढ़ना जानता है परिवर्तन कितना भी हो मगर समय की चाल नही रूकती क्योकि समय कभी भी स्थिर नही हो सकता।हम भी समय के पीछे दौड़ते रहते है और यह हमेश आगे भागता रहता है यह कभी हमारे हाथ नही आता यदि हाथ जाता तो हम समय को स्थिर कर सकते थे इसलिये समय किसी के हाथ नही आता क्योकि समय की प्रवुत्ति सिर्फ आगे बढ़ने की है वापिस मुढ़ना समय ने नही सीखा।

कहते है जो समय के साथ चल दिया वह सफल हो गया और जिसका समय बीत गया अब फिर दोबारा से वह समय लौट कर नही आयेगा। क्योकि समय ने सिर्फ आगे बढ़ना सीखा है।

युग बदलते रहते है मगर समय की दिनचर्या नही बदलती सूर्य समयअनुसार पूरब से निकलता है और पश्चिम में अस्त हो जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

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